इश्क़ में बर्बाद होने के सिवा रक्खा न था ग़म को सहने के अलावा कोई भी चारा न था याद रह रह कर किसी की है सताती रात भर सुब्ह होते भूल जाना ये तुझे शेवा न था ये तिरी उल्फ़त मुझे रखती है बेताबी में गुम ये सभी को थी ख़बर लेकिन कोई चर्चा न था आईना देखूँ तो क्यूँ तू ही नज़र आए मुझे बोलता है क्या तिरा चेहरा मेरे जैसा न था दिन गुज़र जाता है दुनिया की मसाफ़त में मगर रात ही इक इम्तिहाँ है जिस का अंदाज़ा न था रात की तन्हाइयाँ आग़ोश में ले कर मुझे पूछती हैं क्या कभी तन्हाइयाँ देखा न था क्या मोहब्बत वो नशा है मैं ज़रा जानूँ 'निसार' ज़िंदगी में इस तरह पहले कभी बहका न था