बेगाना-ए-वफ़ा तिरा शेवा ही और है अहल-ए-वफ़ा का तौर-तरीक़ा ही और है दैर ओ हरम की राह में रखते नहीं क़दम हम रह-रवान-ए-शौक़ का रस्ता ही और है दिल बेवफ़ा के हाथ न बेचेगा बा-वफ़ा तुम से नहीं बनेगा ये सौदा ही और है अल्लाह दिल न तुम को तड़पता हुआ दिखाए देखा न जाएगा ये तमाशा ही और है जल्वा-फ़रोश आप हैं मैं दिल-फ़रोश हूँ ऐसों से क्या बनेगा ये सौदा ही और है टुकड़े हैं दिल जिगर के 'मुबारक' कि शेर हैं ग़ज़लों का आप की तो सफ़ीना ही और है