है तसव्वुर मुझे हर दम तिरी यकताई का मश्ग़ला आठ पहर है यही तन्हाई का इश्क़ में रश्क हमेशा से चला आता है देखो क़ाबील ने क्या हाल किया भाई का जाम-ए-साइल की तरह हैं मिरी आँखें दर दर जब से आशिक़ किसी काफ़िर-ए-शैदाई का इश्क़-ए-कामिल जो हुआ नंग कहाँ आर कहाँ ध्यान बदमस्त को रहता नहीं रुस्वाई का हिज्र में गर्दिश-ए-बेहूदा जो है ऐ साक़ी जाम क्या कासा-ए-सर है किसी सौदाई का मेरी आँखों ने तुझे देख के वो कुछ देखा कि ज़बान-ए-मिज़ा पर शिकवा है बीनाई का क़दम अग़्यार का रखना हो गवारा क्यूँ कर तेरे दर पर है मुझे शग़्ल जबीं-साई का मुझ से रहता है रमीदा वो ग़ज़ाल-ए-शहरी साफ़ सीखा है चलन आहु-ए-सहराई का हिज्र में चटके जो ग़ुंचे हुई आवाज़ तुफ़ंग सेहन-ए-गुलज़ार है मैदान-ए-सफ़-आराई का जिस ने देखा तुझे ऐ यार हुआ दीवाना है तमाशा तिरे हर एक तमाशाई का सब्ज़ा रंगों का ये है ख़ाक मुक़र्रर 'नासिख़' सब्ज़ रंग इस लिए आता है नज़र काई का