ब-एहतियात मिरे पास से गुज़र भी गया वो बे-नियाज़ रहा और बा-ख़बर भी गया न तन का होश रहा और न जाँ अज़ीज़ हुई वो मा'रका था कि एहसास-ए-तेग़-ओ-सर भी गया तुम्हीं में था वो मगर तुम न उस को जान सके और अब तो वादी-ए-ला-सम्त में उतर भी गया सँभाले बैठे थे दस्तार दोनों हाथों से उठी वो मौज कि पगड़ी के साथ सर भी गया वो ज़हर आरज़ू-ए-लम्स जज़्ब करता रहा किसी को डस न सका फिर वो नाग मर भी गया मिरी अना ही मुझे ए'तिमाद देती थी वो शाख़ टूट गई और वो समर भी गया