बेजा नवाज़िशात का बार-ए-गराँ नहीं मैं ख़ुश हूँ इस लिए कि कोई मेहरबाँ नहीं आग़ोश-ए-हादसात में पाई है परवरिश जो बर्क़ फूँक दे वो मिरा आशियाँ नहीं क्यूँ हंस रहे हैं राह की दुश्वारियों पे लोग हूँ बे-वतन ज़रूर मगर बे-निशाँ नहीं घबराईए न गर्दिश-ए-अय्याम से हनूज़ तर्तीब-ए-फ़स्ल-ए-गुल है ये दौर-ए-ख़िज़ाँ नहीं कुछ बर्क़-सोज़ तिनके मुझे चाहिएँ 'शकेब' झुक जाएँ गुल के बार से वो डालियाँ नहीं