बेज़ार हूँ मैं दिल से दिल भी है मुझ से नालाँ हम दोनों में से कोई तन्हाई चाहता है मेरे लिए वफ़ाएँ लाज़िम बता रहा है अपने लिए रिआ'यत हरजाई चाहता है बाद-ए-सुमूम तेरा मारा हुआ है ये दिल फागुन के मौसमों की पुर्वाई चाहता है मदहोश कर दे साक़ी तू चश्म-ए-नाज़नीं से मय-कश नज़र की बादा-पैमाई चाहता है