दंग हूँ फ़रेब-कारी के अम्बार देख कर By Ghazal << दरिया की तिश्नगी में इंसा... बेज़ार हूँ मैं दिल से दिल... >> दंग हूँ फ़रेब-कारी के अम्बार देख कर चेहरे पे और चेहरों की भर-मार देख कर मुझ से नज़र चुराती रही मेरी मुफ़्लिसी यूसुफ़ को आज फिर सर-ए-बाज़ार देख कर मिलने मुझे भी आई थी इक शाम-ए-ज़िंदगी मुझ से लिपट के रोई थी लाचार देख कर Share on: