बे-कैफ़ जवानी है बे-दर्द ज़माना है नाकाम-ए-मोहब्बत का इतना ही फ़साना है सावन का महीना है मौसम भी सुहाना है आ जाओ जो आना है आ जाओ जो आना है ऐ काश कोई कह दे उस चश्म-ए-फ़ुसूँ-गर से नज़रों का चुराना ही नज़रों का मिलाना है आग़ाज़-ए-मोहब्बत से अंजाम-ए-मोहब्बत तक ''इक आग का दरिया है और डूब के जाना है'