बे-क़रारों को कब क़रार आया मौत भी आई पर न यार आया जब हुआ जिस्म ख़ाक यार आया गर्द उट्ठी तो शहसवार आया लुट गया कारवान-ए-सब्र-ओ-क़रार क़ासिद-ए-अश्क अश्क-बार आया ख़स से जैसे चराग़ जलता है दाग़ के काम जिस्म-ए-ज़ार आया गर कोई ख़ाकसार ख़ाक हुआ ख़ाक उड़ाने मिरा ग़ुबार आया कासा-ए-चर्ख़ वाज़गूँ ही रहा जा के मुझ सा न बादा-ख़्वार आया ज़ुल्फ़ से सैर रू-ए-रंगीं की दाम में मौसम-ए-बहार आया लोटिए मिस्ल-ए-माही-ए-बे-आब कि सर-ए-तेग़-ए-आबदार आया उस ने सौ बार हाल पूछा 'अर्श' शिकवा लब पर न एक बार आया