गिरते हुए जब मैं ने तिरा नाम लिया है मंज़िल ने वहीं बढ़ के मुझे थाम लिया है मय-ख़्वार तो है मोहतसिब-ए-शहर ज़ियादा रिंदों ने यूँही मुफ़्त में इल्ज़ाम लिया है वो मिल न सके याद तो है उन की सलामत इस याद से भी हम ने बहुत काम लिया है हर मरहला-ए-ग़म में मिली इस से तसल्ली हर मोड़ पे घबरा के तिरा नाम लिया है तुझ सा कोई रहबर नहीं ऐ दूरी-ए-मंज़िल एहसान तिरा हम ने बहर-गाम लिया है ऐ शैख़ दिल-ए-साफ़ यूँही तो नहीं मिलता हम ने असर-ए-रू-ए-दिल-आराम लिया है सज्दों में वो पहली से हलावत नहीं 'कौसर' जब से असर-ए-गर्दिश-ए-अय्याम लिया है