बे-ख़बर होने से पहले की ख़बर तो देखते डूबते सूरज की जानिब इक नज़र तो देखते छेड़ कर ज़िक्र-ए-जुदाई सामने उस के कभी उस के चेहरे से हुवैदा उस का डर तो देखते देखने उस को गली की सम्त गर जाने को थे औज पर बेताबी-ए-दीवार-ओ-दर तो देखते जिस ने मिलना ही नहीं है उस को पाने की तलाश बे-वजह कर के कभी कोई सफ़र तो देखते हाथ से छू कर नहीं तो पास ही जा कर उसे शहर में उतरा है इक रश्क-ए-क़मर तो देखते गर्मियों में दश्त-ए-हिज्राँ का सफ़र रखना कभी धूप में जल कर समर देते शजर तो देखते रात की तारीकियों में घर से निकलो तो 'नईम' देखते हैं किस तरह से बे-बसर तो देखते