बे-ख़ुदी अब तो सब पे छाई है बे-तमाशा ये ख़ुद-नुमाई है अब ये बेड़ा ख़ुदा ही पार लगाए दिल है और ग़म की ना-ख़ुदाई है तुझ को ताब-ए-नज़र नहीं वाइ'ज़ इस लिए उज़्र-ए-पारसाई है सब्त है आस्ताँ पे नक़्श-ए-सुजूद हुस्न-ए-तक़दीर जब्हा-साई है माँग 'मानी' जज़ा-ए-महरूमी हश्र है सब ने दाद पाई है