बे-ख़ुदी है न होशियारी है बादा-ख़्वारी सी बादा-ख़्वारी है हुस्न मसरूफ़-ए-पर्दा-दारी है जाने अब किस नज़र की बारी है तू ने देखी तो होगी ऐ नासेह वो मोहब्बत जो इख़्तियारी है कम नहीं शोरिश-ए-नफ़स लेकिन ज़िंदगी पर जुमूद तारी है ग़म-ए-उल्फ़त तो दिल से हार चुका अब ग़म-ए-ज़िंदगी की बारी है जिस चमन में कभी न आए बहार उस चमन की ख़िज़ाँ भी प्यारी है हाए वो बादा-कश कि जिस ने 'शकील' ज़िंदगी बे पिए गुज़ारी है