बे-मज़ा थी जो बद-मज़ा कर दी ज़िंदगी आप ने सज़ा कर दी एक पर्दा था दोस्ती क्या थी बातों बातों में नारवा कर दी तू ने व'अदा किया था जिस दिन का दिल ने उस शाम इंतिहा कर दी तेरे हिस्से का इंतिज़ार किया फिर नमाज़-ए-वफ़ा अदा कर दी देख कर भी मुझे नहीं देखा गवय्या रिश्ते की इब्तिदा कर दी तैरे वादे तिरी अमानत हैं पर वो तस्वीर जो छुपा कर दी आज भी शौक़ है जलाने का तू ने तहरीर भी जला कर दी