अब इस से क्या तुम्हें था या उमीद-वार न था तुम्हारे वस्ल का तुम से तो ख़्वास्त-गार न था शराब पीते ही वो खुल गए वो खुल खेले शब-ए-विसाल में कुछ लुत्फ़-ए-इंतिज़ार न था न झपकी जब शब-ए-व'अदा पलक तो हम समझे ये कोई और बला थी ये इंतिज़ार न था वो तीर आप के तरकश में कौन सा निकला जो बे-चले भी हमारे जिगर के पार न था वो मर गया है तो क्या है हमें भी मरना है ख़ुदा गवाह है 'बेख़ुद' वो शराब-ख़्वार न था