बे-पर्दा हो के जब वो लब-ए-बाम आ गया आँखों पे मेरी दीद का इल्ज़ाम आ गया ता-सुब्ह करवटें ही बदलते रहेंगे हम उन का अगर ख़याल सर-ए-शाम आ गया बेबाकियों पे उन की किसी ने नज़र न की मेरी निगाह-ए-शौक़ पे इल्ज़ाम आ गया इस दौर में बहुत ही ग़नीमत कहो उसे दुख में अगर किसी के कोई काम आ गया कितनी हमारी उम्र-ए-मोहब्बत थी मुख़्तसर आग़ाज़ ही किया था कि अंजाम आ गया दुनिया के ग़म भी हम ने उसी में डुबो दिए 'अमजद' निगाह-ए-नाज़ का जब जाम आ गया