बे-रहम दिल की हिमाक़तों के असीर हैं तभी सर-निगूँ हैं नदामतों के असीर हैं शब-ए-वस्ल इश्क़ की चाँदनी का ग़ुरूर थे वही लोग हिज्र की वहशतों के असीर हैं हुए सर ब-कफ़ हैं जो आँधियों की उड़ान पर ये चराग़ इश्क़ की हुरमतों के असीर हैं जिन्हें अपनी क़ुव्वत-ए-ज़ब्त पे कभी नाज़ था वही अश्क दर्द की शिद्दतों के असीर हैं कोई इश्क़ था जो किसी के जाने से मर गया कोई ज़ख़्म हिज्र की इद्दतों के असीर हैं जिन्हें ऐ ख़ुदा तिरी आयतों से ही बुग़्ज़ है वही बहर-ओ-बर की निजासतों के असीर हैं कहाँ वो ज़मीं को सुना सके हैं निदा-ए-दिल मिरे लफ़्ज़ अर्श की वुसअ'तों के असीर हैं जिन्हें दान कर के चले गए हो अज़ाब-ए-जाँ वो अना-परस्त से इब्रतों के असीर हैं हमी शे'र लिखते हैं तीर-ओ-नेज़ा की नोक पर हमी सर-फिरे हैं बग़ावतों के असीर हैं कभी तुम नया कोई ज़ख़्म दो कि सुना सकूँ अभी शे'र ग़म की समाअतों के असीर हैं वो ख़ुदा-परस्त 'ख़लील' जो सर-ए-दार हैं हम उन्ही के क़ुर्ब की लज़्ज़तों के असीर हैं