बे-रंग बड़े शहर की हस्ती भी वहीं थी इक रंग उड़ाती हुई तितली भी वहीं थी बाज़ार के जादू की न थी काट मिरे पास जो चीज़ बुरी थी वही अच्छी भी वहीं थी बस इक तिरा चेहरा ही न था महफ़िल-ए-गुल में बेला भी था चम्पा भी चमेली भी वहीं थी इस बाढ़ में करता था जहाँ भी मैं किनारा अंदर से उबलती मिरी नद्दी भी वहीं थी सैलाब-ए-बदन उस का जो आया तो गया मैं हर चंद मिरे जिस्म की कश्ती भी वहीं थी ऐ इश्क़ जहाँ तू ने मुझे जम्अ किया था मिट्टी मिरी आख़िर को बिखरनी भी वहीं थी अफ़सोस गई क़ब्र भी 'एहसास'-मियाँ की ये क़ब्र जहाँ थी मिरी मिट्टी भी वहीं थी