बे-रुख़ी ने उस की कैसा ये इशारा कर दिया वक़्त से पहले क़यामत का नज़ारा कर दिया लाख कहने पर भी उस ने रुख़ पे रक्खा था नक़ाब इक झलक की आरज़ू को नागवारा कर दिया चल पड़े दामन झटक कर हम को पीछे छोड़ कर तन्हा आग़ाज़-ए-सफ़र पर क्यूँ दोबारा कर दिया ख़ुद ही लौ उम्मीद की उस ने जगाई और फिर तोड़ कर उम्मीद ख़ुद ही बे-किनारा कर दिया कैसी बेदर्दी से तोड़ा उस ने नाता प्यार का क्यूँ जहाँ में फिर 'सबा' को बे-सहारा कर दिया