बे-सम्त-ओ-बे-ख़याल थी और मैं सफ़र में थी वो शाम पुर-मलाल थी और मैं सफ़र में थी ऐसे ही इक सफ़र में था वो मेरे साथ साथ सो क़ुर्ब से निहाल थी और मैं सफ़र में थी इक रास्ता तवील था रिम-झिम का था समाँ वो शाम बे-मिसाल थी और मैं सफ़र में थी ऐसी ही एक शाम थी जब वो चला गया बस ग़म से मैं निढाल थी और मैं सफ़र में थी बस इतना याद था मुझे चलना है बे-थकन हिम्मत मिरी बहाल थी और मैं सफ़र में थी कब शाम ढल गई 'दुआ' और रात आ गई अब तीरगी सवाल थी और मैं सफ़र में थी