बेटा है न बेटी है माँ बाप न भाई है दुनिया में अगर कुछ है ऐ लोगो लुगाई है ऐ दुख़्तर-ए-रज़ शायद तू जोश में आई है मुँह लगती है मर्दों के क्या शोख़ लुगाई है चिल्लाती हुई मामा चिमटा लिए आई है जब हम ने तिरे दर की ज़ंजीर हिलाई है ऐ शैख़ न पूछो तुम सत्तू भरे हाथ अपने ख़ालिक़ से डरो हज़रत मस्जिद की चटाई है है ख़ुश्क लहू मेरा और नफ़्स कशाकश में वाँ क़त्ल को क़ातिल है याँ ख़त्ना को नाई है की फ़िक्र 'इनायत' ने मय-ख़्वारों की दावत की ख़ाला का लिया बाला नथ माँ की उड़ाई है