बे-दीन हो गए उसे दीन-दार देख कर फंदे में उस के फँस गए ज़ुन्नार देख कर छोड़ा है दुख़्त-ए-रज़ तुझे बेकार देख कर कैसे लगाऊँ मुँह तुझे मुर्दार देख कर कोठे से मार मार के ऐंठन उठा दिया बैठा कभी जो साया-ए-दीवार देख कर दम बंद ख़ून ख़ुश्क छुरी-बंदों का हुआ कूचे में उन के पुश्तों का अम्बार देख कर वहशत को सुन के बोले 'इनायत' से यूँ तबीब हम कैसे हाथ डालें ये आज़ार देख कर