बे-तरह दिल ख़ुशी से डरता है कौन इतना किसी से डरता है उफ़ रे नैरंगियाँ ज़माने की आदमी आदमी से डरता है दुश्मनी ही न हो मआल उस का दिल तिरी दोस्ती से डरता है ये भी है इक तअल्लुक़-ए-ख़ातिर कौन वर्ना किसी से डरता है मंज़िलें गर्द बन गईं फिर भी रहनुमा रहबरी से डरता है इश्क़ फ़रमा-रवा-ए-हफ़्त-अफ़्लाक आप की बरहमी से डरता है जब से वो बे-वफ़ा हुए 'साहिर' दिल मिरा हर किसी से डरता है