वो बात जो हुज़ूर को मुझ से ख़फ़ा करे दिल में तमाम उम्र न आए ख़ुदा करे इतना तो है कि थाम लिया आप ने ही दिल अल्लाह मेरे दर्द-ए-जिगर को सिवा करे आ जाएँ कल वो ख़ुद मिरे ख़त के जवाब में क़ासिद जो कह रहा है यही हो ख़ुदा करे हो जिस को बोसा उस लब-ए-जाँ-बख़्श का नसीब क्यों वो तलाश-ए-चश्मा-ए-आब-ए-बक़ा करे किस काम की भला शब-ए-फ़ुर्क़त में चाँदनी ओढ़े बिछाए कोई इसे कहिए क्या करे