बे-वज्ह नईं है आइना हर बार देखना कोई दम को फूलता है ये गुलज़ार देखना नर्गिस की तरह ख़ाक मेरी उगें हैं चश्म टुक आन के ये हसरत-ए-दीदार देखना खींचे तो तेग़ है हरम-ए-दिल के सैद पर ऐ इश्क़ पर भला तू मुझे मार देखना है नक़्स-ए-जान दीद तिरा पर यही है धुन जी जाओ यार हो मुझे यक-बार देखना ऐ तिफ़्ल-ए-अश्क है फ़लक-ए-हफ़्तमीं प अर्श आगे क़दम न रखियो तू ज़िन्हार देखना पूछे ख़ुदा सबब जो मिरे इश्तियाक़ का मेरी ज़बाँ से हो यही इज़हार देखना हर नक़्श-ए-पा पे तड़पे है यारो हर एक दिल टुक वास्ते ख़ुदा के ये रफ़्तार देखना करता तो है तू आन के 'सौदा' से इख़्तिलात कोई लहर आ गई तो मिरे यार देखना तुझ बिन अजब मआश है 'सौदा' का इन दिनों तू भी टुक उस को जा के सितमगार देखना ने हर्फ़ ओ ने हिकायत ओ ने शेर ओ ने सुख़न ने सैर-ए-बाग़ ओ ने गुल-ओ-गुलज़ार देखना ख़ामोश अपने कल्बा-ए-अहज़ाँ में रोज़ ओ शब तन्हा पड़े हुए दर-ओ-दीवार देखना या जा के उस गली में जहाँ था तिरा गुज़र ले सुब्ह ता-ब-शाम कई बार देखना तस्कीन-ए-दिल न इस में भी पाई तो बहर-ए-शग़्ल पढ़ना ये शेर गर कभू अशआर देखना कहते थे हम न देख सकें रोज़-ए-हिज्र को पर जो ख़ुदा दिखाए सो नाचार देखना