हसरतें रोती रहें दिल में मुजाविर की तरह दिल मगर चुप ही रहा लौह-ए-मक़ाबिर की तरह ख़ुश्क पत्तों की तरह छुट गए यारान-ए-कुहन फिर न पलटे कभी पतझड़ के मुसाफ़िर की तरह आ तिरी माँग में कुछ अश्क पिरोता जाऊँ मैं तो हर छाँव से गुज़रुँगा मुहाजिर की तरह मैं हूँ इक नक़्श-ए-क़दम दश्त-ए-फ़रामोशी का भूल जाओगे मुझे तुम भी मुसाफ़िर की तरह चारागर दूर न जाना कहीं जी डरता है आज की रात है गहरी शब-ए-आख़िर की तरह दुश्मन-ए-मेहर-ओ-वफ़ा से कोई करता है निबाह कौन चाहेगा तुझे तेरे 'मुसव्विर' की तरह