बेवफ़ा गर है वो तजदीद-ए-वफ़ा हो कैसे दर्द ही दिल की दवा हो तो दवा हो कैसे वो कभी 'मीर' है लिखता कभी ख़ुद को 'ग़ालिब' हर्फ़ आ जाएगा तन्क़ीद रवा हो कैसे जल्वा-गर हर-सू फ़रोज़ाँ जो दरख़्शाँ मुझ में हो न गर दूर निगाहों से ख़ुदा हो कैसे इश्क़ कब खेल तमाशा है ये कोई दिल का क़र्ज़ है सर पे मेरे कोई अदा हो कैसे मैं कि इक बंदा-ए-ख़ाती हूँ खड़ा हूँ दर पर लफ़्ज़ मजबूर हैं सब हम्द-ओ-सना हो कैसे मैं हूँ या तुम हमें जीना है किसी की ख़ातिर रूह का जिस्म से रिश्ता है जुदा हो कैसे अब तो बस ये है कि हो जाएँ फ़ना हम दोनों क्या करें उम्र ये अब सर्फ़-ए-दुआ हो कैसे सिर्फ़ पत्थर ही नहीं हो भी लहू कुछ दिल में सर पटकने से कोई रंग-ए-हिना हो कैसे