बेवफ़ा गर सनम नहीं होता तर्क-ए-उल्फ़त का ग़म नहीं होता तुम न हँसते जो मेरे रोने पर दिल-शिकन इतना ग़म नहीं होता रास्ते बनते कटते जाते हैं फ़ासला है कि कम नहीं होता भूल जाते मुझे जहाँ वाले ज़िक्र गर दम-ब-दम नहीं होता अपने किरदार की करामत है यूँ कोई मोहतरम नहीं होता सत्ह-बीनी से हट के देखो तो दिल समुंदर से कम नहीं होता