बेवफ़ाई का हक़ अदा कर दो ज़ख़्म फिर से कोई अता कर दो क़ैद में हूँ तुम्हारी यादों के हो सके तो मुझे रिहा कर दो शाम होने को है चले आओ आज की शब को ख़ुशनुमा कर दो दिल लिया है तो जान भी ले लो ये करम भी ख़ुदा ख़ुदा कर दो भूल कर शिकवे और गिले सारे इश्क़ की फिर से इब्तिदा कर दो गुलशन-ए-ज़ीस्त में है वीरानी आ कर इस को हरा-भरा कर दो ऐब-जूई जो कर रहा है 'समर' रू-ब-रू उस के आइना कर दो