दिल के जज़्बात को सीने में छुपाना मुश्किल अपना घर अपने ही हाथों है जलाना मुश्किल कैफ़ियत दिल की तो चेहरे से अयाँ होती है इश्क़ और मुश्क को जैसे हो छुपाना मुश्किल मुश्किलें आज भी कुछ कम नहीं इंसाँ के लिए आने वाला है मगर और ज़माना मुश्किल जिस को अल्लाह ने बख़्शी है इनायत अपनी उस को दुनिया की निगाहों में गिराना मुश्किल एक जा क़ातिल-ओ-मुंसिफ़ को है देखा मिलते अब तो इंसाफ़ अदालत से है पाना मुश्किल पेट की आग तो बुझ सकती है खाने से 'समर' इश्क़ की आग को फिर भी है बुझाना मुश्किल