भड़की हुई है शम-ए-शबिस्तान-ए-ज़िंदगी शो'ला न चूम ले कहीं दामान-ए-ज़िंदगी मरने के बाद फूलों से तुर्बत नवाज़ दी होता है कौन ज़ीस्त में पुरसान-ए-ज़िंदगी ऐश-ओ-ख़ुशी नशात-ओ-तरब राहत-ओ-सुकूँ हैं इन से बढ़ के कौन हरीफ़ान-ए-ज़िंदगी बार-ए-अलम उठाने के क़ाबिल बना दिया क्या कम हुआ है मुझ पे ये एहसान-ए-ज़िंदगी आग़ाज़-ए-बाब-ए-नौ है मिरी मौत ऐ 'अमीन' तब्दील कर रहा हूँ मैं उन्वान-ए-ज़िंदगी