हर वक़्त सियासत ठीक नहीं बे-बात की हुज्जत ठीक नहीं देखो न नफ़ा नुक़सान अभी लाशों की तिजारत ठीक नहीं जब चीख़ रही हो पांचाली पांडव की सदाक़त ठीक नहीं हाथ उन के दामन छूने लगें इतनी भी शराफ़त ठीक नहीं तुम भी कुछ टूटे फूटे हो रिश्तों की भी हालत ठीक नहीं सच को सच 'अंजना' लिख देना झूटों से मुरव्वत ठीक नहीं