भागे अच्छी शक्लों वाले इश्क़ है गोया काम बुरा अपनी हालत क्या में बताऊँ बद अच्छा बदनाम बुरा गेसू-ओ-रुख़ को जब से चाहा तब से मेरा रंग ये है शाम अच्छा तो सुब्ह बुरा और सुब्ह अच्छा तो शाम बुरा क़दर हो क्या ख़ाक उस के घर में आँधी के सी आम हैं दिल आशिक़ टूटे पड़ते हैं हर रोज़ का इज़्न-ए-आम बुरा बाँध के हल्क़े घेरेंगे अब मेरे दिल की ख़ैर नहीं घूंघर वाले गेसू उस के बाँध रहे हैं लाम बुरा सर पे अमामा हाथ में सुब्हा 'शौक़' न जा बुत-ख़ाने को बुत हैं बड़े काफ़िर रख देंगे सर इल्ज़ाम बुरा