दिल खोटा है हम को उस से राज़-ए-इश्क़ न कहना था घर का भेदी लंका ढाए इतना समझे रहना था क्यूँ हँसते हो मैं जो बरहना आज जुनूँ के हाथों हूँ कुछ दिन गुज़रे मैं ने भी भी रंग लिबास इक पहना था नज़्अ' के वक़्त आए हो तुम अब पूछ रहे हो क्या मुझ से हालत मेरी सब कह गुज़री जो कुछ तुम से कहना था आ के गया वो रोया कीन ये हर्ज हुआ नज़्ज़ारे में आँखें कुछ नासूर नहीं थीं जिन को हर दम बहना था हिम्मत हारे जी दे बैठे सब लज़्ज़त खोई ऐ 'शौक़' मरने की जल्दी ही क्या थी इश्क़ का ग़म कुछ सहना था