भला कब मैं निशाने पर नहीं आया मिरे हाथों में पर पत्थर नहीं आया मैं तौबा दोस्ती से कर तो लूँ लेकिन हमेशा पीठ पे ख़ंजर नहीं आया कहीं ठहरे नहीं फिर भी शिकायत है सफ़र में ख़ुशनुमा मंज़र नहीं आया निभाई है मोहब्बत उम्र-भर 'आतिश' मोहब्बत में कभी अंतर नहीं आया