भला कब तक कोई तन्हा रहेगा कहाँ तक ये नगर सूना रहेगा शब-ए-फ़ुर्क़त तो कट जाएगी लेकिन तुम्हारे जौर का चर्चा रहेगा हमें तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ भी गवारा ज़माना कब मगर चिपका रहेगा जहाँ भी नाम आएगा तुम्हारा यक़ीनन तज़्किरा मेरा रहेगा जुनून-ए-इश्क़ की वारफ़्तगी पर सुबुक-सर मुद्दतों सहरा रहेगा