भरी हुई है दिल-ए-ज़ार में हवा-ए-क़फ़स चमन में जी न लगेगा कहीं सिवाए क़फ़स तिरे असीर-ए-सितम हैं ये मुब्तला-ए-क़फ़स कभी न देखें सू-ए-आशियाँ सिवाए क़फ़स गया न ख़ार असीरी का दिल से ता-दम-ए-मर्ग हज़ार फूलों के सय्याद ने बनाए क़फ़स असीर हो के छुटे फ़िक्र-ए-आब-ओ-दाना से ज़ियादा क्यूँ न गुलिस्ताँ से हम को भाए क़फ़स न पूछ शौक़-ए-अमीरी है किस क़दर सय्याद वो अंदलीब हूँ दूँ नक़्द-ए-जाँ बहा-ए-क़फ़स मैं हूँ वो बुलबुल-ए-महव-ए-असीरी-ए-बेदाद रहेगी रूह भी बा'द-ए-फ़ना फ़िदा-ए-क़फ़स न भूलते थे किसी तरह आशियाँ की याद बहुत दिनों में हुआ हूँ मैं आश्ना-ए-क़फ़स सितम भी लुत्फ़ से सय्याद का नहीं ख़ाली कि बंद करता है फूलों से रख़्ना-हा-ए-क़फ़स 'क़लक़' न शाद हुए कुछ भी हम रिहा हो कर चमन में याद बहुत आए आश्ना-ए-क़फ़स