भटक जाते हैं रहबर रहबरी में कुछ ऐसी मंज़िलें हैं ज़िंदगी में पता कैसे मिले उस लापता का जो गुम रहता हो अपने आप ही में ख़बर-दार ऐ मिरी वहशत ख़बर-दार कोई लग़्ज़िश न हो दीवानगी में न यूँही बे-ख़ुदी में गुम है कोई निहाँ राज़-ए-ख़ुदी है बे-ख़ुदी में फ़रिश्ते भी समझने से हैं क़ासिर बशर क्या है लिबास-ए-आदमी में तुम्हें है रौशनी पर नाज़ लेकिन निहाँ है तीरगी भी रौशनी में हसीं तख़्ईल की पैकर-तराशी न हो 'कौसर' तो क्या है शाएरी में
This is a great सरदार अंजुम शायरी. True lovers of shayari will love this अंजूम रहबर शायरी.