भटक रहा हूँ ख़लाओं में गुम-शुदा की तरह सुकूत-ए-संग ने ठुकरा दिया सदा की तरह मिरे वजूद को पिघला रही है बर्फ़ की आँच मगर वो चुप सी लगी है मुझे ख़ुदा की तरह अजीब शहर है परछाइयाँ चमकती हैं हर अजनबी मुझे लगता है आश्ना की तरह चला था घर से निकल कर पहाड़ की जानिब पलट के आ गया बस्ती में फिर सदा की तरह धरी रहेगी ये ख़ुशबू की खोखली ज़ंजीर हर एक रंग से उड़ जाऊँगा हवा की तरह गिरी थी ओस जो कल शब बदन के सहरा में ये बात फैल गई शहर में वबा की तरह हमें हवाओं की ठोकर भी रास आ न सकी पड़े हैं वक़्त के रस्ते में नक़्श-ए-पा की तरह