हम-नवा मिलता तो आवाज़ का सौदा करते हम कहाँ आ गए परछाईं का पीछा करते रंग-ओ-बू ज़ेहन की दीवार बने हैं वर्ना तेरी तस्वीर बनाते तिरी पूजा करते दिन से दिन होते न ये रात सी रातें होतीं किसी हमदर्द से जो दर्द का रिश्ता करते कोई ग़म पाँव की ज़ंजीर कहाँ तक होगा जोगिया पहन के बाज़ार में घूमा करते ये भी क्या कम है तिरे नाम पे जीते हैं अभी होंट जल जाते अगर हम कोई शिकवा करते कोई खंडर कोई गिरती हुई दीवार सही कट गई उम्र यहाँ जिस्म को साया करते