भँवर में तू ही फ़क़त मेरा आसरा तो नहीं तू नाख़ुदा ही सही पर मिरा ख़ुदा तो नहीं इक और मुझ को मिरी तर्ज़ का मिला है यहाँ सो अब ये सोचता हूँ मैं वो दूसरा तो नहीं अभी भी चलता है साया जो साथ साथ मिरे बता ऐ वक़्त कभी मैं शजर रहा तो नहीं हैं गहरी जड़ से शजर की बुलंदियाँ मशरूत सो पस्तियाँ ये कहीं मेरा इर्तिक़ा तो नहीं जो पास ये मिरे बे-ख़ौफ़ चले आते हैं मिरे बदन पे परिंदों का घोंसला तो नहीं ऐ आइने तू ज़रा देख ग़ौर से मिरी आँख गिरे हैं अश्क कोई ख़्वाब भी गिरा तो नहीं