भँवर से बच के वो साहिल के पास डूब गया जहाँ का देख के ख़ौफ़-ओ-हिरास डूब गया अजब से ख़ौफ़ में लिपटा है गाँव का पनघट सुना है फिर से कोई देवदास डूब गया मुझे शराब ही इतनी मिली थी दुनिया से कि मारे शर्म के मेरा गिलास डूब गया गवारा हो न सका उस को बहर का एहसान लबों पे ले के क़यामत की प्यास डूब गया कहूँ तो किस से कहूँ अपने दिल की तकलीफ़ें मिरे ही ग़म में मिरा ग़म-शनास डूब गया हुआ जो सामना सूरज का मेरे ज़ख़्मों से फ़लक पे छोड़ के अपना लिबास डूब गया 'नदीम' अपने ग़मों से निकल चुका था मगर ग़म-ए-जहान से हो कर उदास डूब गया