भीड़ चारों तरफ़ मगर तन्हा लोग रहते हैं उम्र भर तन्हा कारवाँ कारवाँ हर इक मंज़र आदमी आदमी मगर तन्हा सैकड़ों क़ाफ़िले गुज़रते हैं और रहती है रहगुज़र तन्हा अब मुहाफ़िज़ भी लूट लेते हैं छोड़ कर जाइए न घर तन्हा रोज़ मिलता हूँ सैकड़ों से मगर रोज़ जाता हूँ अपने घर तन्हा दोस्तों की तलाश में 'अरशद' लौट कर आ गई नज़र तन्हा