भीगा हुआ है आँचल आँखों में भी नमी है फैला हुआ है काजल आँखों में भी नमी है बरसेगा आज खुल कर बेचैन-ओ-मुज़्तरिब हूँ छाया है ग़म का बादल आँखों में भी नमी है कैसी अजीब हालत तारी हुई है दिल पर हूँ मुंतज़िर मुसलसल आँखों में भी नमी है मुद्दत के बाद आया दुनिया-ए-दिल में कोई सहरा हुआ है जल-थल आँखों में भी नमी है ये ख़ुद-सुपुर्दगी का है इक अजीब आलम ख़्वाबों का जैसे जंगल आँखों में भी नमी है महसूस हो रहा है इक जाल में हूँ कब से ये इश्क़ है कि दलदल आँखों में भी नमी है इक हर्फ़-ए-हक़ के बदले चढ़ते हैं कितने सूली शहर-ए-वफ़ा है मक़्तल आँखों में भी नमी है इक दिन सुख़न की मलिका बन जाओगी 'सबीला' फिर आज क्यूँ हो बे-कल आँखों में भी नमी है