भूल जाऊँ तुझे ऐसी कोई तदबीर नहीं और पा लूँ तुझे ऐसी मिरी तक़दीर नहीं सुन तो लेती है मिरे ग़म का फ़साना मुझ से शुक्र है तेरी तरह से तिरी तस्वीर नहीं या तो अब तेरा तसव्वुर भी ख़फ़ा है मुझ से या मिरी आह में वो पहली सी तासीर नहीं दिल-शिकन ख़त पे भी दिल चाह रहा है ऐ दोस्त झूट ही कोई कहे ये तिरी तहरीर नहीं उस के कूचे को मैं चाहूँ भी तो छोड़े न बने और कहने को मिरे पाँव में ज़ंजीर नहीं कारवाँ ज़ीस्त का लुट कर सर-ए-मंज़िल पहुँचे ये मिरे ख़्वाब की तज़हीक है ता'बीर नहीं सोज़ उल्फ़त का निगाहों से अयाँ होता है ये फ़साना कभी मिन्नत-कश-ए-तफ़्सीर नहीं दिल को मिलती है उसी तीर-ए-नज़र से राहत जिस से ज़हरीला ज़माने में कोई तीर नहीं ऐ 'ज़फ़र' हासिल-ए-उल्फ़त हैं ये मेरे आँसू ये अलग बात कि इन तारों में तनवीर नहीं