गेसुओं के असीर हैं हम भी क़िस्सा-ए-दिल-पज़ीर हैं हम भी हुस्न में तुम सा गर नहीं कोई 'इश्क़ में बे-नज़ीर हैं हम भी मिस्ल-ए-शीरीं अगर हसीन हो तुम ख़ालिक़-ए-जू-ए-शीर हैं हम भी उस के हाथों में जो नहीं मिलती एक ऐसी लकीर हैं हम भी चाँद को देख कर कहा उस ने रश्क-ए-बद्र-ए-मुनीर हैं हम भी बे-वफ़ा से कोई गिला न किया किस क़दर बा-ज़मीर हैं हम भी आँसुओं के दिए जलाते हैं रौशनी के सफ़ीर हैं हम भी वो कहीं भी हों देख लेते हैं कितने रौशन-ज़मीर हैं हम भी जिस की नज़रों में कुछ नहीं शाही एक ऐसे फ़क़ीर हैं हम भी कोई हम सा नहीं ज़माने में आप अपनी नज़ीर हैं हम भी पास दौलत नहीं तो क्या यारो अपने दिल के अमीर हैं हम भी नर्म दिल हैं मगर 'अदू के लिए एक ज़हरीला तीर हैं हम भी मुत्तहिद आज हम नहीं यारो यूँ जहाँ हैं हक़ीर हैं हम भी नज़्म-ए-गुलशन बदल तो सकते हैं मस्लहत के असीर हैं हम भी शे'र पुर-दर्द हैं 'ज़फ़र' अपने इस ज़माने के 'मीर' हैं हम भी