भूला-बिसरा ख़्वाब हुए हम कुछ ऐसे नायाब हुए हम दरिया बन कर सूख गए थे क़तरे से सैराब हुए हम जाने किस मंज़र से गुज़रे पल-भर में बरफ़ाब हुए हम ख़ुद अपनी ही गहराई में आख़िर को ग़र्क़ाब हुए हम ख़्वाबों की ताबीर भी देखें इतने कब ख़ुश-ख़्वाब हुए हम बात ज़बाँ पर ला कर 'सैफ़ी' बे-वक़'अत बे-आब हुए हम