मायूस ख़ुद-ब-ख़ुद दिल-ए-उम्मीद-वार है By Ghazal << है दुनिया में ज़बाँ मेरी ... भूला-बिसरा ख़्वाब हुए हम >> मायूस ख़ुद-ब-ख़ुद दिल-ए-उम्मीद-वार है इस गुल में बू ख़िज़ाँ की है रंग-ए-बहार है तय हो चुकीं शिकस्त-ए-तमन्ना की मंज़िलें अब इस के बाद गिर्या-ए-बे-इख़्तियार है उस बेवफ़ा से कर के वफ़ा मर-मिटा 'रज़ा' इक क़िस्सा-ए-तवील का ये इख़्तिसार है Share on: