भूलने वाले तुझे याद किया है बरसों दिल-ए-वीराँ को यूँ आबाद किया है बरसों साथ जो दे न सका राह-ए-वफ़ा में अपना बे-इरादा भी उसे याद किया है बरसों ग़म जहाँ में वो रफ़ीक़-ए-अबदी है अपना जिस ने हर हाल में दिल शाद किया है बरसों भूल सकता हूँ भला गर्दिश-ए-दौराँ तुझ को रोज़ तू ने सितम ईजाद किया है बरसों कब गिरफ़्तार-ए-ख़म-ए-गेसू-ए-हिज्राँ न रहा कब तिरे दर्द ने आज़ार किया है बरसों अब भी 'अनवार' पशेमानी-ए-ख़ातिर हो न क्यूँ उम्र-ए-रफ़्ता तुझे बर्बाद किया है बरसों