भुलाता हूँ मगर ग़म की दरख़शानी नहीं जाती वो आईना मुक़ाबिल है कि हैरानी नहीं जाती निगाह-ए-शौक़ से ता-देर हैरानी नहीं जाती शबाब आया तो ज़ालिम शक्ल पहचानी नहीं जाती तुझे देखूँ कि तेरे इल्तिफ़ात-ए-नर्म को समझूँ मोहब्बत भी तिरे जल्वों में पहचानी नहीं जाती सहाब ओ सैल धो सकते नहीं गर्द-ए-फ़लाकत को बहार आई मगर दुनिया की वीरानी नहीं जाती कहाँ तक साथ दे सकती हैं आँखें सोज़िश-ए-दिल का बहुत रोया मगर ग़म की गिराँ-जानी नहीं जाती जवानी को गुनाहों से अलग करना नहीं मुमकिन ये वो मय है जो फ़र्त-ए-कैफ़ से छानी नहीं जाती मोहब्बत तार-तार-ए-पैरहन कर अपने काँटों से कि इन फूलों से मेरी तंग-दामानी नहीं जाती 'नुशूर' इस वक़्त भी दुनिया असीर-ए-मुल्क-ओ-दौलत है अभी फ़िक्र ओ नज़र ता-हद्द-ए-इंसानी नहीं जाती